जटिंगा का गाँव
असम की खूबसूरत पहाड़ियों में बसा जटिंगा गाँव अपने अद्भुत पक्षी घटना के लिए जाना जाता है, जहां कुछ महीनों के दौरान पक्षी बिना कारण अपने आप मर जाते हैं। इस रहस्य ने वर्षों से वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को चकित किया है। लेकिन जटिंगा की पहचान केवल इस अद्वितीय पक्षी घटना तक सीमित नहीं है। इस गाँव में एक और भयानक रहस्य छुपा हुआ है—कई निर्दोष किशोरियों की रहस्यमयी और निर्मम हत्याएं।
पहली हत्या
1993 की एक धुंधली सर्दियों की रात थी। गाँव की सत्रह वर्षीय माया अपने दोस्तों के साथ गाँव के मेले से लौट रही थी। माया एक जीवंत और हंसमुख लड़की थी, जिसने हाल ही में हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी और कॉलेज जाने का सपना देख रही थी। वह अपने परिवार की आँखों का तारा थी। मेले से लौटते समय, माया ने महसूस किया कि कोई उसका पीछा कर रहा है। उसे अपनी माँ की चेतावनी याद आई कि देर रात अकेले बाहर न निकले। लेकिन वह सोचती रही कि यह केवल उसका वहम है और घर की ओर बढ़ती रही।
जब वह घर से कुछ ही दूरी पर थी, तभी अचानक उसे किसी ने पीछे से पकड़ लिया। माया ने चीखने की कोशिश की, लेकिन उसके मुँह पर एक कपड़ा बांध दिया गया। अगली सुबह, गाँव वालों ने माया की लाश गाँव के पास के घने बाँस के जंगल में पाई। उसकी हत्या इतनी निर्ममता से की गई थी कि देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए। उसका शरीर खून से लथपथ था और उसके गले पर गहरे निशान थे। पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन कोई ठोस सुराग नहीं मिला। यह घटना पूरे गाँव को हिला कर रख देने वाली थी। माया की मौत के बाद गाँव में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था। लोग अपने बच्चों को घर से बाहर जाने से रोकने लगे और रात में कोई भी घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करता था।
हत्याओं का सिलसिला
अगले कुछ वर्षों में, गाँव में और भी हत्याएं होने लगीं। सभी हत्याएं लगभग एक ही तरीके से की गईं और सभी की लाशें गाँव के पास के ही इलाकों में पाई गईं। 1995 में, पंद्रह वर्षीय सीमा की लाश उसी जंगल में मिली जहां माया की मिली थी। सीमा की भी हत्या बहुत ही निर्ममता से की गई थी और उसके शरीर पर भी वैसे ही गहरे निशान थे।
1997 में, सोलह वर्षीय रीता की भी उसी तरह से हत्या कर दी गई। उसकी लाश गाँव के तालाब के पास मिली। रीता की हत्या ने पूरे गाँव को और भी अधिक भयभीत कर दिया। लोगों को अब यकीन हो गया था कि यह कोई एक ही व्यक्ति है जो इन हत्याओं को अंजाम दे रहा है।
पुलिस की जांच
पुलिस ने इन हत्याओं की जांच में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई संदिग्धों से पूछताछ की गई, लेकिन कोई ठोस सुराग नहीं मिला। गाँव के लोग अब पुलिस पर भी भरोसा नहीं कर पा रहे थे। वे मानने लगे थे कि यह कोई इंसान नहीं, बल्कि कोई भूत या आत्मा है जो इन हत्याओं को अंजाम दे रही है।
प्रोफेसर एलेक जेफ्रीज का आगमन
इसी बीच, लिस्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एलेक जेफ्रीज, जिन्होंने डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की तकनीक विकसित की थी, ने इस मामले में दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने पुलिस को सलाह दी कि वे डीएनए सैंपलिंग की मदद से अपराधी को पकड़ सकते हैं। पुलिस ने गाँव के सभी पुरुषों से डीएनए सैंपल देने की अपील की। लगभग 5000 पुरुषों ने अपनी सहमति दी और अपने डीएनए सैंपल दिए। पुलिस ने इन सैंपल्स की तुलना सभी पीड़िताओं से मिले डीएनए सैंपल से की। यह प्रक्रिया बहुत ही विस्तृत और समय लेने वाली थी, लेकिन पुलिस ने धैर्य नहीं खोया।
अपराधी का पकड़ा जाना
जांच के दौरान, एक चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति की पहचान के तहत डीएनए सैंपल दिया। इस धोखाधड़ी की खबर पुलिस तक पहुंची और उन्होंने उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया। उस व्यक्ति का नाम रामू था। जब पुलिस ने उसके डीएनए सैंपल की तुलना की, तो वह सभी अपराध स्थलों से मिले डीएनए से मेल खा गया। अंततः, रामू को गिरफ्तार कर लिया गया और उसने अपने अपराध कबूल कर लिए। उसने बताया कि उसने इन हत्याओं को अंजाम देने के लिए गाँव की लड़कियों को निशाना बनाया था और उसने यह सब सिर्फ अपने मानसिक संतुष्टि के लिए किया था।
निष्कर्ष
यह मामला इतिहास में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहला मामला था जिसमें डीएनए सैंपलिंग का प्रयोग करके अपराधी को पकड़ा गया था। इस तकनीक ने न्याय प्रणाली में एक नया आयाम जोड़ा और इसके बाद से कई अपराधों को सुलझाने में मदद मिली। जटिंगा की इन हत्याओं ने हमें यह सिखाया कि विज्ञान और तकनीक की मदद से हम अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचा सकते हैं और न्याय की स्थापना कर सकते हैं। गाँव वालों ने अब राहत की सांस ली और गाँव में धीरे-धीरे सामान्य जीवन लौटने लगा। लेकिन इन हत्याओं की डरावनी यादें और माया, सीमा, रीता की आत्माएं आज भी उस गाँव की फिजाओं में जिंदा हैं, जो कभी न भुलाए जाने वाले दर्द और डर की कहानियों का हिस्सा बन चुकी हैं।
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